10 October 2020

शोर

शोर बहुत था उस रात,

नहीं सुनाई दे रही थी किसी की बात;

चाहता तो था अराम से भोजन करना,

मगर भूल गया था कि अब भी है करोना।


पहना नहीं था कुछ लोगों ने मास्क,

२ गज की दूरी का उड गया था मजाक;

किन्ही से अर्जी करी की पहन लो नकाब,

पर मिले केवल अपने अहंकार पर घाव।


रो रहे थे जोर जोर से गोद मे बच्चे,

पर नहीं लग रहे थे उनके माँ-बाप को धक्के;

इच्छा तो थी कि चलें अपने धाम,

पर शर्म ने पकडी हुई थी हमारी लगाम।


किसी तरह किया समाप्त भोजन,

लगा कि व्यर्थ किया पाचन;

न था भोजन में पत्नी का प्यार,

न था उसमे माँ का दुलार।


अब यूं भागा घर की ओर,

नहीं सहन हो रहा था वो शोर;

कमरा बंद करके बैठा ध्यान में,

सोचा शांति मिलेगी एकांत में।


लेकिन लग गई विचार की झड़ी,

करोना,  दफतर, घर की फिकरें बडी;

बाहर के शोर से तो निकल आया हर बारी,

परंतु मन के चक्रव्युह से कैसे निकलु मुरारी!






3 comments:

moksh said...

अति उतम ।
बहुत सुंदर। अमेजिंग टविसट।

Unknown said...

Behadd khoobsurat.
Aftr 3 years u used this picture.😎

Unknown said...

मन के चक्रव्यूह से आज तक कौन निकल पाया है काविगन्न??