माँ के गर्भ मे रहता तू,
चार दिवारी में उसे रख न पाता तू;
प्रेमिका के लिए तारे तोडता तू,
क्रोध मे उसी रिशते को तोडता तू;
खुशी में भाई को गले से लगाता तू,
लोभ मे खुशी-खुशी उसका गला काटता तू;
सखा को अपना दर्पण मानता तू,
फिर भी उससे मात्सर्य रखता तू;
भगवान से अपनी कामना पूर्ती करवाता तू,
भगवान कि आज्ञा का पालन नहीं चाहता तू;
मानव कितना विचित्र है तू!
प्रेमिका के लिए तारे तोडता तू,
क्रोध मे उसी रिशते को तोडता तू;
खुशी में भाई को गले से लगाता तू,
लोभ मे खुशी-खुशी उसका गला काटता तू;
सखा को अपना दर्पण मानता तू,
फिर भी उससे मात्सर्य रखता तू;
भगवान से अपनी कामना पूर्ती करवाता तू,
भगवान कि आज्ञा का पालन नहीं चाहता तू;
मानव कितना विचित्र है तू!